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भक्त क्यों चढ़ाते हैं बाबा श्याम को निशान?

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भक्त क्यों चढ़ाते हैं बाबा श्याम को निशान? खाटू श्यामजी।  अपने आराध्य, इष्टदेव को प्रिय वस्तु और प्रसाद आदि भेंट करना भक्ति का ही एक हिस्सा है। इससे आस्था की डोर और मजबूत होती है। शबरी ने श्रीराम को जूठे बेर खिलाए तो विदुर ने श्रीकृष्ण को साधारण भोजन के भोग से प्रसन्न कर लिया। राजस्थान के शेखावाटी में स्थित बाबा श्याम का धाम खाटू श्यामजी भी भक्त और भगवान के अटूट रिश्ते का दूसरा नाम है। यहां मंदिर में बाबा को विभिन्न प्रकार का भोग अर्पित किया जाता है तो दूर-दूर से लोग बाबा को निशान चढ़ाने आते हैं। निशान का अर्थ है- पवित्र ध्वजा। हर साल लाखों लोग जय-जयकार करते हुए श्याम प्रभु के दरबार में आते हैं और ये निशान बाबा के चरणों में अर्पित करते हैं। श्याम बाबा को निशान अर्पित क्यों किए जाते हैं? वास्तव में निशान चढ़ाने की परंपरा का भी एक रहस्य है। यह ध्वजा बहुत श्रद्धा से बाबा को अर्पित की जाती है। सनातन संस्कृति में ध्वजा विजय की प्रतीक होती है और स्वयं बाबा श्याम की भी प्रतिज्ञा है कि वे हारे हुए का, निर्बल का पक्ष लेंगे, उसे विजयी बनाएंगे। इसलिए जहां श्याम हैं, वहां विजय है, जहां उनका नि...

भक्त आलू सिंह: इनकी भक्ति बन गई मिसाल, शब्दों में थी बाबा श्याम की शक्ति

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भक्त आलू सिंह: इनकी भक्ति बन गई मिसाल, शब्दों में थी बाबा श्याम की शक्ति Go चुनाव 2021 वीडियो इंडिया Coronavirus राज्य मनोरंजन खेल विश्व ऑटोमोबाइल गैजेट बिजनेस एम्प्लॉई कॉर्नर स्वास्थ्य धर्म/ज्योतिष शिक्षा पत्रिकायन रियल एस्टेट मुद्दा फैक्ट फाइंडर शोक सन्देश भक्त आलू सिंह: इनकी भक्ति बन गई मिसाल, शब्दों में थी बाबा श्याम की  भक्ति के इतिहास में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो काल के मार्ग पर अपने चरणचिह्न छोड़ जाते हैं। ये चिह्न अमिट होते हैं। बाबा श्याम के भक्तों में ऐसा ही एक नाम है - महाराज आलू सिंहजी।  खाटू श्यामजी।  बाबा श्याम के संपूर्ण विश्व में असंख्य भक्त हैं। भक्ति के इतिहास में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो काल के मार्ग पर अपने चरणचिह्न छोड़ जाते हैं। ये चिह्न अमिट होते हैं और भक्ति के संसार में इन्हें अनुकरणीय माना जाता है। बाबा श्याम के भक्तों में ऐसा ही एक नाम है - महाराज आलू सिंहजी।  उनका जन्म 1916 में बाबा की नगरी खाटू श्यामजी के एक राजपूत परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम किशन सिंह था। बचपन से ही आलू सिंहजी में भक्ति के संस्कार थे। वे अपने पिताजी के संग बाबा ...

दीनानाथ मेरी बात भजन (श्याम भंजन)

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                   श्याम भंजन                                                                                                                      दीनानाथ मेरी बात, छानी कोणी तेरे से, आँखड़ली चुराकर बाबा, जासी कठे मेरे से।। खाटू वाले श्याम तेरी, शरण में आ गयो, श्याम प्रभु रूप तेरो, नैणां में समां गयो, बिसरावे मत बाबा, हार मानी तेरे से, आँखड़ली चुराकर बाबा, जासी कठे मेरे से।। बालक हूँ मैं तेरो श्याम, मुझको निभायले, दुखड़े को मारयो मन्ने, कालजे लगायले, पथ दिखलादे बाबा, काढ़ दे अँधेरे से, आँखड़ली चुराकर बाबा, जासी कठे मेरे से।। मुरली अधर पे, कदम तले झूमे हैं, भक्त खड़ा तेरे, चरणां ने चूमे हैं, खाली हाथ बोल कया, जाऊ तेरे नेरे से, आँखड़ली चु...

महामृत्युंजय मंत्र रोज पढ़ने से होते हैं ये बड़े फायदे और खत्म हो जाते हैं दोष

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महामृत्युंजय मंत्र रोज पढ़ने से होते हैं ये बड़े फायदे और खत्म हो जाते हैं दोष    महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव को प्रसन्न करने वाला खास मंत्र है। ये मंत्र ऋग्वेद और यजुर्वेद में भगवान शिव की स्तुती में लिखा है। रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करना चाहिए। जिससे हर तरह की परेशानी और रोग खत्म हो जाते हैं। वहीं अकाल मृत्यु (असमय मौत) का डर भी दूर होता है। शिवपुराण के अनुसार, इस मंत्र के जप से मनुष्य की सभी बाधाएं और परेशानियां खत्म हो जाती हैं।   ये है महामृत्युंजय मंत्र ऊँ त्र्यंबकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्द्धनम्, ऊर्वारुकमिव बन्धनात, मृत्योर्मुक्षियमामृतात्।। महामृत्युंजय मंत्र से होता है दोषों का नाश आकाल मृत्यु से बचाता है  किसी-किसी व्यक्ति के हाथों की रेखा में अकाल मृत्यु का योग होता है। वैदिक शास्त्रों की मानें तो इस मंत्र के जाप से अकाल मृत्यु के योग को टाला जा सकता है। ऐसा भी कहा गया है कि इस मंत्र के जाप से मौत के मुंह से लोग बाहर आ जाते हैं। इतना ही नहीं अगर आपकी कुंडली में कोई गंभीर बीमारी, दुर्घटना या फिर कम आयु का योग है तो इस मंत्र के जाप से यह भी ट...

सालासर बालाजी का इतिहास ऑर सालासर में अंजनी माता का प्राकट्य

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 सालासर बालाजी का इतिहास एक नजर सालासर बालाजी का उद्ïभव भारतवर्ष प्रसिद्घ सिद्घपीठ सालासर बालाजी के उद्ïभव तथा सालासर में प्रतिष्ठïापित होने का इतिहास भी बालाजी के चमत्कारों में से एक चमत्कार है। अपने भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अमरत्व प्रदान करने वाले सालासर बालाजी महाराज की प्रतिमा का उद्ïभव का नागौर जिले के आसोटा गांव में 1811 में हुआ था। बताया जाता है कि महात्मा मोहनदास जी महाराज की तपस्या से प्रसन्न होकर हनुमान जी ने साक्षाम मूर्ति रूप में प्रकट होने का वचन दिया था। अपने भक्त से किये इस वचन को निभाने के लिए बालाजी ने आसोटा में एक जाट जो कि खेत जोत रहा था, के हल की नोक में कोई कठोर चीज फंसने का का उसे आभास हुआ, तो उसने उसे निकाल कर देखा तो एक पत्थर था। जिसे जाट ने अपने अंगोछे से पोंछकर साफ किया तब उस पर बालाजी महाराज की छवि उभर आई। मूर्ति को जाट ने जांटी के नीचे रख दिया। तभी जाटनी जाट के लिए खाना लेकर आ गई। उसने बालाजी के मूर्ति के बाजरे के चूरमे का भोग लगाया। तभी से बालाजी के चूरमे का भोग लगता है। अपने वचन के मुताबिक बालाजी ने उसी रात्री को आसोटा के तत्कालीन ठाकुर को स्व...

रानी भटियानी जीवन परिचय Rani Bhatiyani Life introduction

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रानी भटियानी जीवन परिचय     रानी भटियानी [1]   एक   हिन्दू देवी   है जो पश्चिमी   राजस्थान , भारत और   सिंध , पाकिस्तान में उनके प्रमुख मंदिरों में   जसोल ,   बाड़मेर   और   जैसलमेर   है, जहां उन्हें माजीसा या भुआसा कहा जाता है। जीवन परिचय [ संपादित करें ] जैसलमेर [2]  जिले के गाँव जोगीदास में ठाकुर जोगराज सिंह भाटी के यहां वि.सं. 1725 में पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम स्वरूप कंवर रखा गया। बालिका बचपन से ही बड़ी रूपवती और गुणवान थी। विवाह योग्य होने पर स्वरूप कंवर का विवाह जसोल। रावल कल्याणमल से होना तय हुआ। कल्याणमल ने अपना पहला विवाह तो देवड़ी से किया था जब उनसे कोई संतान न हुई तो दूसरा विवाह स्वरूप कंवर भटियाणी से किया। स्त्रियों में सोतिया डाह की भावना जन्म जात ही होती है। बड़ी रानी देवड़ी तो स्वरूप कंवर से प्रारम्भ से ही ईष्र्या करने लगी परन्तु राणी स्वरूप कंवर उसे अपनी बड़ी बहिन के समान समझती थी। जसोल ठिकाने में रानी स्वरूप कवर राणी भटियाणी के नाम से जानी जाने लगी। विवाह के दो वर्ष पश्चात् भटियाणी के पुत्र हुआ जि...

2000 साल पुराने दधिमती माता मंदिर के गुंबद पर हाथ से उकेरी गई थी रामायण

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  2000 साल पुराने दधिमती माता मंदिर के गुंबद पर हाथ से उकेरी गई थी रामायण दधिमती माता और मंदिर। यह मंदिर नागौर जिले के गोठ और मांगलोद गांव के बीच स्थित है गुंबद का निर्माण 1300 साल पहले हुआ था, जबकि मां का प्राकट्य दो हजार साल पहले का है नवरात्र में दाधीच समाज के लोग यहां बच्चों का रिश्ता तय करने आते हैं, अष्टमी काे मेला लगता है नागौर जिले में गोठ और मांगलोद गांव के बीच दाधीच ब्राह्मणों की कुलदेवी दधिमती माता का 2000 साल पुराना मंदिर है। दावा है, उत्तर भारत का यह सबसे प्राचीन मंदिर है। इसका निर्माण गुप्त संवत 289 को हुआ था। इसकी विशेषता यह है कि मंदिर के गुंबद पर हाथ से पूरी रामायण उकेरी गई है। गुंबद का निर्माण 1300 साल पहले हुआ था, जबकि मान्यता है कि मां का प्राकट्य दो हजार साल पहले हुआ था। यहां दाधीच समाज के लोग बच्चों के रिश्ते की बात पहले तय कर लेते हैं और नवरात्र में बच्चों को आपस में दिखाकर मां के समक्ष ही रिश्ता पक्का करते हैं। अष्टमी को यहां मेले का आयोजन होता है, जिसमें देशभर से लोग आते हैं।   यहां राजा मान्धाता ने यज्ञ किया था  किवदंती है कि यहां ...

भगवान विष्णु के 24 अवतार Bhagavaan Vishnu Ke 24 Avataar

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  भगवान विष्णु के 24 अवतारों में 23 अवतार हो चुके है 24 वा अवतार होना है बाकी कहा जाता है कि जब जब पृथ्वी पर कोई संकट आता है तो भगवान अवतार लेकर उस संकट को दूर करते है। भगवान शिव और भगवान विष्णु ने अनेको बार पृथ्वी पर अवतार लिया है। भगवान शिव के 19 अवतारों के बारे में हम आपको बता चुके है आज हम आपको भगवान विष्णु के 24 अवतारों के बारे में बताएँगे।  इन में से 23 अवतार अब तक पृथ्वी पर अवतरित हो चुके है जबकि 24 वा अवतार ‘कल्कि अवतार’ के रूप में होना बाकी है। इन 24 अवतार में से 10 अवतार विष्णु जी के मुख्य अवतार माने जाते है। यह है मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार. कृष्ण अवतार, बुद्ध अवतार, कल्कि अवतार। 1- श्री सनकादि मुनि  धर्म ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में लोक पितामह ब्रह्मा ने अनेक लोकों की रचना करने की इच्छा से घोर तपस्या की। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तप अर्थ वाले सन नाम से युक्त होकर सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार नाम के चार मुनियों के रूप में अवतार लिया। ये चारों प्राकट्य काल से ही मोक्ष मार्ग प...