वीर तेजाजी जीवनी - Biography of Veer Tejaji in Hindi Jivani

 


वीर तेजाजी महाराज की कथा | Veer Tejaji Maharaj Ki Katha

 लोकदेवता वीर कुंवर तेजाजी जाट समुदाय के आराध्य देव हैं. मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा गुजरात और मध्यप्रदेश में मुख्य रूप से पूजे जाते हैं. किसान अपनी खुशहाली के लिए खेती में हल जोतते समय तेजाजी महाराज की पूजा करता हैं. तेजाजी अपने वचन के लिए सबसे लोकप्रिय देवता हैं. जिन्होंने सर्प देवता को अपने कहे वचन के अनुसार गायों को छुड़ाकर अपनी जान कुर्बान की थी. इस कारण आज भी सर्पदंश होने पर तेजाजी महाराज की मनौती मांगी जाती हैं. उनकी घोड़ी का नाम लीलण एवं पत्नी का नाम पेमल था.

वीर तेजाजी महाराज का जीवन परिचय कथा कहानी इतिहास व मेला

ज्ञात जानकारी के मुताबिक़ वीर तेजाजी का जन्म 29 फरवरी 1074 (माघ शुक्ल १४, विक्रम संवत् ११३०) को नागौर जिले के खड़नाल ग्राम में हुआ था. इनके पिता का नाम थिरराज तथा माँ का नाम रामकुंवरी था. लोगों में प्रचलित मान्यता के अनुसार इनका विवाह पनेर ग्रामवासी रायमल जी की पुत्री पेमल से हुआ था. कम उम्रः में ही विवाह हो जाने के कारण उन्हें इस बात की जानकारी नही थी.

इस राज को तेजाजी से छुपाये जाने के पीछे वजह यह थी, कि किसी कारण से थिरराज और पेमल के मामा के बिच झगड़ा हो गया, खून की प्यासी तलवारे चलने से इसमें पेमल के मामा मारे गये थे. इसी वजह से उनकों अपने विवाह प्रसंग के बारे में किसी ने नही बताया था.

धौलिया कुल में जन्में तेजाजी खरनाल के शासक थे, उनके पास 24 ग्राम का सम्राज्य था. एक बार त ,में हल जोतते समय उनकी भाभी द्वारा देरी से खाना पहुचाने पर तेजाजी को गुस्सा आ गया, तथा उन्होंने देरी की वजह जाननी चाही, तो तेजाजी की भाभी उनके वैवाहिक प्रसंग के बारे में बताते हुए ताने भरे स्वर कहे-

इस पर तेजाजी अपनी घोड़ी लीलण पर सवार होकर ससुराल की ओर चलते. वहां पहुचने पर सांस द्वारा उन्हें अनजान में श्राप भरे कड़वे शब्द कहे जाते हैं, इस पर वो क्रोधित होकर वापिस चल देते हैं. पेमल को जब इस बात का पता चलता हैं. वो तेजाजी के पीछे जाती हैं, तथा उन्हें एक रात रुकने के लिए मना देती हैं. तेजाजी ससुराल में रुकने की बजाय लाछा नामक गुजरी के यहाँ रुकते हैं. संयोगवश उसी रात को लाछा की गायें मीणा चोर चुरा ले जाते हैं.

लाछा गुजरी जब तेजाजी को अपनी गाये छुड़ाने की विनती करती हैं, तो तेजाजी गौ रक्षार्थ खातिर रात को ही मीनों का पीछा का पीछा करने निकल जाते हैं. राह में उन्हें एक सांप जलता हुआ दिखाई दिया, जलते सांप को देखकर तेजाजी को उस पर दया आ गई. तथा भाले के सहारे उसे आग की लपटों से बाहर निकाल दिया. सांप अपने जोड़े से बिछुड़ जाने से अत्यधिक क्रोधित हुआ. तथा उसने तेजा जी को डसने की बात कही.

तेजाजी ने नागदेवता की इच्छा को बड़ी विनम्रता से स्वीकार करते हुए, सांप से गाये छुडाने के बाद वापिस आने का वचन देते हैं. इस पर नाग उनकी बात मान लेते हैं. तेजाजी चोरों से भयंकर युद्ध करते हैं, इससे उनका सारा शरीर लहुलुहान हो गये मगर सारी गायों को छुड़ाकर वापिस ले आए, इसके बाद बाद अपने वचन की पालना हेतु नाग के पास पहुचते है और उसे डसने को कहते हैं. नाग तेजाजी के घायल शरीर को देखकर पूछते हैं मै कहाँ डंक मारू आपका शरीर तो लहूलुहान हो चूका हैं.

इस पर तेजाजी अपनी जीभ निकालकर जीभ पर डंक मारने को कहते हैं. इस प्रकार  किशनगढ़ के पास सुरसरा में भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160, तदनुसार 28 अगस्त 1103 के दिन तेजाजी की मृत्यु हो जाती हैं. सांप अपने वचन के पक्के कुंवर तेजा जी को साँपों के देवता के रूप में पूजे जाने का वरदान देते हैं. आज भी तेजाजी के देवरा व थान पर सर्प दंश वाले व्यक्ति के धागा बाँधा जाता हैं. तथा पुजारी जहर को चूस कर निकाल लेते हैं.

तेजाजी का मंदिर

जाट समुदाय वीर तेजाजी को शिव के समकक्ष मानते हैं. देशभर में तेजाजी के देवालय बने हुए हैं इन मन्दिरों को देवरा या थान के नाम से जाना जाता हैं. पी.एन.ओक नामक एक इतिहासकार ने अपनी पुस्तक ताजमहल इज ए हिन्दू टेम्पल प्लेस में 100 से अधिक तथ्य पेश कर साबित कर चुके हैं, आगरा का ताजमहल एक समय में तेजोमहल था.

मुगलों ने जिसे तुड़वाकर ताजमहल का रूप दे दिया था. इस बात को सच साबित करने के लिए इतिहासकार ने आगरा के आस-पास जाट बहुल आबादी का होना तथा तेजोमहालय में शिवलिंग के साथ साथ तेजलिंग का पाया जाना इसकी पुष्टि करता हैं. जाट समुदाय वीर तेजाजी को शिवजी का अवतार मानते हैं.

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